सामान्यजन असामान्यता के प्रति अनेक मिथ्या धारणाएँ पाले हुए होते हैं। ये मिथ्या या भ्रामक धारणाएँ निम्नलिखित हैं –
1. असामान्यता एक संक्रामक तथा आनुवंशिक रोग है: यह एक प्रमुख भ्रामक धारणा है कि सभी सामाजिक रोगों का सम्बन्ध आनुवांशिकता से होता है तथा ये संक्रामक होता है, जबकि वास्तव में सच्चाई यह है कि मनोविदलता और उन्माद अवसाद मनस्ताप (Manic Depressive Psychosis) के अलावा अन्य किसी प्रकार की असामान्यता की उत्पत्ति में आनुवंशिकता का कोई हाथ नहीं होता है।
2. असामान्यता असाध्य है: असामान्य विकृतियों के बारे में एक मिथ्या धारणा यह है कि ये असाध्य है। इन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है क्योंकि आधुनिक मानसिक चिकित्सालयों में आजकल कुशलतापूर्वक उपचार की व्यवस्था की गयी है।
3. असामान्य व्यवहार सदैव विचित्र एवं बेतुका होता है: जनसामान्य की मिथ्या धारणा है कि सभी असामान्य रोगी हमेशा विचित्र, बेतुका, अतार्किक एवं असंगत व्यवहार ही करते हैं। वस्तुस्थिति यह है कि मानसिक विकृतियाँ कई प्रकार की होती हैं। कुछ विशेष प्रकार की असामान्यता से ग्रस्त व्यक्ति निश्चय ही विचित्र एवं विक्षिप्ततापूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं परन्तु अधिकांश प्रकार की असामान्यता में रोगी प्रायः सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत करते हैं।
4. मनोरोग अत्यधिक कामुकता के परिणाम होते हैं: असामान्यता के सम्बन्ध में एक भ्रांति यह भी है। मनोविकार काम-प्रवृत्ति के अधिक उत्तेजित होने या कामुक विचारों के कारण इतना अधिक उत्पन्न नहीं होते हैं जितने कि अदमनीय, अपराधनीय काम-प्रवृत्ति एवं घृणित आत्मपश्चाताप व आत्मग्लानि के द्वारा उत्पन्न होते हैं।