कवि ने रचना-कर्म, कविता अथवा काव्य को 'रस का अक्षयपात्र' बताया है। अक्षयपात्र से आशय कभी न खाली होने वाला कविता या काव्य से रस और भाव का आस्वाद सदा-सर्वदा होता रहता है। रचना-कर्म की ये विशेषताएँ कि उनकी स्थिति कालजयी होती है तथा शताब्दियों तक पाठक उनसे रस, भाव, प्रेरणा एवं सन्देश ग्रहण करते रहते हैं।