सुजान महतो की सम्पत्ति बढ़ी तो चित्त की वृत्ति धर्म की ओर झुक पड़ी। साधु-सन्तों का आदर-सत्कार होने लगा। बड़े अफसर गाँव में आते तो सुजान के चौपाल में ही ठहरते। वे उनकी देख-रेख अच्छी तरह से करते थे। भजन-भाव होने लगा। सुजान ने गाँव में एक पक्का कुआँ बनवाया, ब्रह्मभोज हुआ। पूरे गाँववालों को न्योता था। गया के यात्री गाँव में आकर ठहरे तो सुजान और उनकी पत्नी गया जाकर आए। आने के बाद यज्ञ और फिर ब्रह्मभोज। इस तरह के कार्य करने से गाँव के सभी लोग उनका आदर करने लगे।