कविवर बिहारी नीतिपरक दोहे लिखने में पटु हैं। कनक – कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाय दोहे में धनी व्यक्तियों की मनोदशा का वर्णन किया है। कनक शब्द के दो अर्थ हैं – धतूरा, सोना। बिहारी के अनुसार धतूरे की अपेक्षा सोने में सौ गुना नशा अधिक है। धतूरे को खाने से मानव पागल बनता है। लेकिन सोना (धन – दौलत) को पाने से ही मानव पागल हो जाता है। लेकिन यह सही नहीं है। सोना या धन – दौलत के पाने पर भी मानव को कभी गर्व न करना चाहिए। बिहारी ने कनक को लेकर यही समझाने का प्रयास किया है।