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आपदा को परिभाषित करते हुए आपदाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए। या भूकम्प एवं बाढ़ पर टिप्पणी लिखिए।

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आपदा

ऐसी कोई भी प्रत्याशित घटना जो टूट-फूट या क्षति, पारिस्थितिक विघ्न, जन-जीवन का ह्रास या स्वास्थ्य बिगड़ने का बड़े पैमाने पर कारण बने, आपदा कहलाती है।

विश्व बैंक के अनुसार, आपदाएँ अल्पावधि की एक असाधारण घटना है जो देश की अर्थव्यवस्था को गम्भीर रूप से अस्त-व्यस्त ही नहीं करतीं बल्कि सामाजिक एवं जैविक विकास की दृष्टि से भी विनाशकारी होती हैं।

दूसरे शब्दों में, प्राकृतिक अथवा मानव-जनित उन चरम घटनाओं को आपदा (Disaster) की संज्ञा दी जाती है, जब प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र के अजैविक तथा जैविक संघटकों की सहन-शक्ति की पराकाष्ठा या चरमसीमा हो जाती है, उनके द्वारा उत्पन्न परिवर्तनों के साथ समायोजन करना दुष्कर हो जाता है, धन व जन की अपार क्षति होती है, प्रलयंकारी स्थिति पैदा हो जाती है तथा ये ही चरम घटनाएँ विश्व स्तर पर समाचार-पत्रों, रेडियो व दूरदर्शन इत्यादि विभिन्न समाचार माध्यमों की प्रमुख सुर्खियाँ बन जाती हैं। वास्तव में देखा जाए तो आपदाएँ (Disasters) उपलब्ध संसाधनों (Existing Infra structure) का भारी विनाश करती हैं तथा भविष्य में होने वाले विकास का मार्ग अवरुद्ध करती हैं।

आपदाओं के प्रमुख रूप निम्नांकित हैं|-

⦁    भूकम्प,
⦁    चक्रवात,
⦁    बाढ़,
⦁    सामुद्रिक तूफान या ज्वारभाटा तरंगें,
⦁    भूस्खलन,
⦁    ज्वालामुखीय विस्फोटन,
⦁    प्रचण्ड आँधी या तूफान,
⦁    अग्नि (ग्रामीण, नगरीय, वानस्पतिक, आयुध व बारूद भण्डारण कारखानों में लगी अग्नि),
⦁    तुषार तूफान,
⦁    सूखा या अकाल,
⦁    महामारी,
⦁    आणविक विस्फोट व संग्राम इत्यादि।।

आपदाओं के प्रकार

प्रकृति जीवन की आधारशिला है, प्रकृति के बिना पृथ्वी पर जीवन सम्भव नहीं। प्रकृति की उदारता मानव जाति के लिए एक अनमोल उपहार है। प्रकृति जीवित रहने के लिए परम आवश्यक शाश्वत स्रोत है। हर जीव को प्रकृति जल, वायु, भोजन तथा रहने के लिए आश्रय प्रदान करती है। प्रकृति के इन बहुमूल्य उपहारों के साथ-साथ हम युगों से प्रकृति की विनाशलीला एवं उसका प्रलयंकारी प्रकोप भी देखते आ रहे हैं। जल, थल और नभ में होने वाली आकस्मिक हलचल से उत्पन्न संकट प्रायः आपदा (Disaster) का विकराल रूप धारण कर लेते हैं जिनसे जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, जान व माल की काफी क्षति होती है, साथ ही आजीविका भी बुर’ तरह से प्रभावित होती है। भारत में आपदाओं की उत्पत्ति के कारकों के आधार पर इनको सामा यत: निम्नांकित दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है
⦁    प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters),
⦁    मानव-जनित आपदाएँ (Man-finade Disasters)।

प्राकृतिक आपदाएँ

भारत की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण हमारे देश में प्राकृतिक आपदाओं के घटने की सम्भावना बनी रहती है। भारत में कुछ प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ अग्रांकित हैं
⦁    बाढ़े–अतिवृष्टि/ओलावृष्टि,
⦁    सूखा-अकाल,
⦁    भूकम्प,
⦁    चक्रवात, आँधी व तूफान,
⦁    भूस्खलन,
⦁    बादल विस्फोटन एवं तड़ित विस्फोटन,
⦁    सामुद्रिक तूफान,
⦁    वातावरणीय आपदाएँ इत्यादि।
इनमें से कुछ प्रमुख आपदाओं का वर्णन शीर्षकवार निम्नलिखित है

1. भूकम्प – भूकम्प (Earthquakes) को महाप्रलयंकारी प्राकृतिक आपदा माना जाता है, जो आकस्मिक रूप से बिना किसी पूर्वसूचना के तीव्र गति से घटित होती है। सामान्यत: भूकम्प का शाब्दिक आशय भू-पर्पटी नामक भूमि की सतह में यकायक कम्पन पैदा होने से है। साधारणतया अधिकांश भूकम्प पहले बहुत धीमे अथवा मामूली कम्पन के रूप में प्रारम्भ होते हैं तथा ये शीघ्र ही अत्यन्त तीव्र रूप धारण कर लेते हैं। फिर धीरे-धीरे इनकी तीव्रता कम होती जाती है और अन्ततः कम्पन बन्द हो जाता है। भूमि के भीतर भूकम्प का उद्गम स्थान केन्द्र-बिन्दु कहा जाता है। केन्द्रबिन्दु के ठीक एकदम ऊपर पृथ्वी के धरातल पर स्थित बिन्दु को अधिकेन्द्र के नाम से जाना जाता है। भारत का लगभग 65% क्षेत्रफल मध्यम से तीव्र भूकम्प सम्भावी क्षेत्र है। गत 50 वर्षों में प्रायः देश के समूचे क्षेत्र में भूकम्प दृष्टिगोचर हुए हैं।

2. बाढे – जल प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अनमोल उपहार है जो प्रत्येक जीव-जन्तु एवं प्राणि के जीवन का आधार है, अर्थात् कोई भी जीव-जन्तु एवं प्राणि बिना जल के जीवित नहीं रह सकता, यह बात निर्विवाद सत्य है; किन्तु दूसरी ओर यह भी आश्चर्यजनक सत्य है। कि जब यही जल बाढ़ के रूप में होता है तो हजारों जीव, जन्तुओं के प्राणों की बलि ले लेता है, अर्थात् बाढ़ का जल जान व माल दोनों का भक्षक हो जाता है। जब जल अपने नियमित स्तर से ऊपर उठकर या अपने नियमित मार्ग से विचलित होकर निर्द्वन्द्व स्थिति में अवांछित दिशाओं में बहता है तो ऐसी स्थिति बाढ़ की स्थिति हो जाती है जो कि जान व
माल दोनों के लिए काफी खतरनाक होती है।

सामान्यतः बाढ़े धीरे-धीरे आती हैं और इनके आने में कई घण्टों का समय लग जाता है, किन्तु भारी वर्षा, बाँधों के टूटने, चक्रवात (Cyclones) या समुद्री तूफान आने के कारण बाढ़े अचानक या अति शीघ्र भी आ जाती हैं। जब नदी का जल स्तर बढ़ने की वजह से आस-पास के किनारे के मैदानों में पानी फैलने लग जाए तो इसे नदी तटीय बाढ़ कहा जाता है। अत्यधिक वर्षा अथवा अत्यधिक बर्फ पिघलने के कारण नदी तटीय बाढ़ आने की सम्भावना प्रबल हो जाती है; क्योंकि अत्यधिक वर्षा तथा अत्यधिक बर्फ पिघलने से जल की मात्रा नदियों की धारण क्षमता से अधिक हो जाती है और यही अतिरिक्त अधिक जल बाढ़ का रूप धारण कर लेता है। ज्वार, समुद्री तूफान, चक्रवात एवं सुनामी लहरों के कारण समुद्रीय तटवर्तीय क्षेत्रों में बाढ़े आती हैं। नदी तल पर अवसाद (मृदा के ऐसे सूक्ष्म कण जो नदी के जल में बहकर नदी के तल या बाढ़ वाले मैदान में फैल जाते हैं, अवसाद कहलाते हैं) का जमाव होने से ज्वार की स्थिति के कारण तटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का संकट और भी अधिक खतरनाक व घातक हो जाता है, जो जान व माल को काफी नुकसान तथा आजीविका को अत्यधिक खतरा पैदा कर देता है।
अन्त में निष्कर्षतः कहा जा सकता है, कि भारी वर्षा, अत्यधिक बर्फ पिघलने, चक्रवात, सुनामी, बाँध टूटने इत्यादि के कारण जलाशयों, झीलों तथा नदियों के जल स्तर में वृद्धि होने से आस-पास के विशाल क्षेत्र का अस्थायी तौर पर जलमग्न हो जाना ही बाढ़ कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक आपदा है।

3. भूस्खलन – जमीन के खिसकने को भूस्खलन कहा जाता है। यह विश्व में घटने वाली विशाल प्राकृतिक आपदाओं (Major Natural Disasters) यो विपत्तियों (Calamities) में से एक है। भू-गतिशील क्षेत्रों की पट्टियों (Belts of Geodynamic Areas) में ही अधिकतर भूस्खलन दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा भारी वर्षा के प्रभाव से बाढ़ आ जाने से पहाड़ी क्षेत्रों में भी भूस्खलन (Landslides) हो जाता है। विशेष रूप से हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों (Himalyan Mountains Areas) तथा उत्तर:-पूर्व के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रायः सर्वाधिक भूस्खलन सतत् होते रहते हैं। इस आपदा से प्रभावित पूरे क्षेत्र में जान-माल की भारी मात्रा में क्षति होती है अर्थात् पूरा ही क्षेत्र बुरी तरह से तबाह हो सकता है, साथ ही पूरे पर्वतीय क्षेत्र में भूस्खलन के कारण यातायात एवं संचार-व्यवस्था एकदम ठप या अवरुद्ध हो जाती है। भूस्खलन (Landslides), मलबा गिरने (Debris Fall), मलबा खिसकने (Debris Slide), मलबा बहने (Debris Flow) तथा चट्टान लुढ़कने (Rock Toppling) इत्यादि से ढलान एवं जमीन की सतह (Slope and Ground Surface) काफी क्षतिग्रस्त हो जाती है जिसकी वजह से प्रभावित क्षेत्रों में अनियन्त्रित रूप से मृदा अपरदन (Soil Erosion) होता रहता है।

4. सूखा – सूखा भी एक प्राकृतिक आपदा है जिसका मुख्य कारण लम्बे समय तक अनावृष्टि (अर्थात् वर्षा का न होना) है। वर्षा का न होना अथवा अनिश्चित वर्षा का होना प्राकृतिक कारण है जिसे न तो मानव के किसी प्रयास द्वारा बदला जा सकता है और न उसे नियन्त्रित ही किया जा सकता है। संक्षेप में, किसी क्षेत्र में वर्षा न होने अथवा अति कम वर्षा होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न भोजन, जल, पशु, चारे, वनस्पतियों एवं रोजगार में कमी वाली स्थिति या अभावग्रसित स्थिति को ही सूखा (Drought) कहा जाता है। प्रायः सूखा ही अकाल का कारण बनता है। आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिमी उत्तर: प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान इत्यादि प्रान्तों में तो सूखे की समस्या का प्रायः प्रतिवर्ष ही सामना करना पड़ जाता है।

5. चक्रवात – उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में वायुमण्डल के अन्तर्गत कम दाब व अधिक दाब प्रवणता वाले क्षेत्र को चक्रवात की संज्ञा दी जाती है। चक्रवात एक प्रबल भंवर की भॉति होता है जिसके दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा (Anticlockwise Direction) में तथा उत्तर:ी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise Direction) में तीव्र हवाओं (जो कि कभी-कभी लगभग 350 किमी/घण्टे की गति से अधिक) के साथ-साथ तीव्र मूसलाधार वर्षा होती है एवं विशाल महासागरीय लहरें उठती हैं। चक्रवात के एकदम मध्य केन्द्र में एक शान्त क्षेत्र होता है जिसे साधारणतया चक्रवात की आँख (Eye) कहा जाता है। चक्रवात की आँख वाले क्षेत्र में मेघ बिल्कुल नहीं होते तथा हवा भी काफी धीमे वेग से बहती है, किन्तु इसे शान्त ‘आँख’ के चारों तरफ 20-30 किमी तक विस्तृत मेघों की दीवार का क्षेत्र होता है, जहाँ झंझावातीय पवने (Gale) मूसलाधार बारिश वाले मेघों के साथ-साथ गर्जन व बिजली की चमक भी पायी जाती है। चक्रवात का व्यास कई सौ किमी के घेरे वाला होता है। चक्रवात के केन्द्र में स्थित आँख का व्यास भी लगभग 20-25 किमी का होता है। चक्रवात (Cyclones) में जान व माल दोनों को भारी क्षति होती है।

चक्रवात प्रायः भूमध्य रेखा के 5-20 डिग्री उत्तर:-दक्षिण अक्षांश (Latitude) के मध्य में ही आते हैं। बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले चक्रवातों का प्रकोप विशेष तौर पर भारत के पूर्वी तटीय भाग में दृष्टिगोचर होता है। पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटीय भाग चक्रवात के भीषण प्रकोप, तीव्र गति की पवनों, बाढ़ों तथा तूफानी लहरों का शिकार होते हैं। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में प्रलयंकारी भीषण चक्रवातों की संख्या विश्व के अन्य चक्रवात सम्भावित क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है। भारत के चक्रवात (Cyclones); जैसे—तूफान, प्रशान्त महासागर में टाइफून, अटलांटिक महासागर में हरीकेन तथा ऑस्ट्रेलिया में विलीविली नामों से उद्घोषित किए जाते हैं।

6. सुनामी – “सुनामी जापानी भाषा का शब्द है, जो दो शब्द “सू (Tsu)” अर्थात् समुद्री किनारा या बन्दरगाह (Harbour) तथा “नामी (Nami)” अर्थात् लहरों (Waves) से बना है। सुनामी लहरें ऐसी लहरें हैं जो भूकम्पों (Earthquakes), ज्वालामुखीय विस्फोटन (Volcanic Eruptions) अथवा जलगत भूस्खलनों (Underwater Landslides) के कारण उत्पन्न होती हैं। इन लहरों की ऊँचाई 15 मीटर या उससे अधिक होती है तथा ये समुद्रतट के आस-पास की बस्तियों (Coastal Communities) को एकदम तहस-नहस (तबाह) कर देती हैं। ये सुनामी लहरें 50 किमी प्रति घण्टे की गति से कई किमी के क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लेती हैं। सुनामी लहरें किसी भी दिन तथा किसी भी समय आ सकती हैं। सुनामी लहरों की ताकत को मापा जा सकना एक दुष्कर कार्य है। बहुत बड़ी-बड़ी एवं वजनदार चट्टानें भी इसके आवेग के सामने असहाय हो जाती हैं। जब ये लहरें उथले पानी (Shallow water) में प्रविष्ट होती हैं तो ये भयावह शक्ति (Devastating Force) के साथ तट से टकराकर काफी ऊँची उठ जाती हैं। किसी बड़े भूकम्प (Major Earthquake) के आने से कई घण्टों तक सुनामी (T-sunami) का खतरा बने रहने की आशंका रहती।

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