विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ मूलतः प्राथमिक अर्थव्यवस्थाएँ नहीं हैं। आयोजन के 56 वर्ष पश्चात् भारत आज भी एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था ही है। कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। महात्मा गांधी के अनुसार–“कृषि भारत की आत्मा है।” योजना आयोग भी आयोजन की सफलता के लिए कृषि को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता है। भारत में करोड़ों लोगों को भोजन और आजीविका कृषि से ही प्राप्त होती है। कृषि पर ही देश के उद्योग-धन्धे, व्यापार, व्यवसाय, यातायात एवं संचार के साधन निर्भर हैं। लार्ड मेयो के शब्दों में–“भारत की उन्नति धन और सभ्यता के दृष्टिकोण से खेती पर आधारित है। संसार में शायद ही कोई ऐसा देश हो, जिसकी सरकार खेती से इतना प्रत्यक्ष और तात्कालिक लगाव रखती हो। भारत की सरकार मात्र एक सरकार ही नहीं अपितु मुख्य भूमि-स्वामी भी है।”
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व का अनुमान निम्नलिखित तथ्यों से लगाया जा सकता है-
1. राष्ट्रीय आय के प्रमुख स्रोत– भारत की राष्ट्रीय आय का सर्वाधिक अंश कृषि एवं सम्बद्ध व्यवसायों से ही प्राप्त होता है। 2010-11 में लगभग 14.5% राष्ट्रीय आय कृषि से प्राप्त हुई थी, जबकि 1968-69 में 44.4% राष्ट्रीय आय की प्राप्ति कृषि से हुई थी। 1955-56 में तो यह 54% था। स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय का एक बड़ा भाग कृषि से प्राप्त होता है, यद्यपि विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान निरन्तर कम होता जा रहा है।
2. आजीविका का प्रमुख स्रोत- भारत में कृषि आजीविका का प्रमुख स्रोत है। श्री वी० के० आर० वी० राव के अनुसार, 1991 ई० में सम्पूर्ण जनसंख्या का लगभग 66.3% भाग कृषि एवं सम्बद्ध व्यवसायों से अपनी आजीविका प्राप्त करता था, जबकि ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा आदि देशों में कृषि एवं सम्बद्ध व्यवसायों पर निर्भर रहने वाली जनसंख्या का अंश 20% से भी कम है। देश की कुल जनसंख्या का 77.3% भाग गाँवों में रहता है और गाँवों में मुख्य व्यवसाय कृषि है।
3. सर्वाधिक भूमि का उपयोग- कृषि में देश के भू-क्षेत्र का सर्वाधिक भाग प्रयोग किया जाता है। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार कुल भू-क्षेत्र के 49.8% भाग में खेती की जाती है।
4. खाद्यान्न की पूर्ति का साधन- कृषि देश की लगभग 121 करोड़ जनसंख्या को भोजन तथा लगभग 36 करोड़ पशुओं को चारा प्रदान करती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारतीयों के भोजन में कृषि उत्पादन ही प्रमुख होते हैं। यदि जनसंख्या वृद्धि एवं आर्थिक विकास के परिवेश में खाद्य-सामग्री की पूर्ति को नहीं बढ़ाया जाता है, तो देश के आर्थिक विकास का ढाँचा चरमरा जाता है।
5. औद्योगिक कच्चे माल की पूर्ति का साधन- देश के महत्त्वपूर्ण उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर ही निर्भर हैं। सूती वस्त्र, चीनी, जूट, वनस्पति तेल, चाय व कॉफी इसके प्रमुख उदाहरण हैं। संसार के सभी देशों में उद्योगों का विकास कृषि के विकास के बाद ही सम्भव हुआ है। इस प्रकार, औद्योगिक विकास कृषि के विकास पर ही निर्भर है।
6. पशुपालन में सहायक- हमारे कृषक पशुपालन कार्य एक सहायक धन्धे के रूप में करते हैं। पशुपालन उद्योग से समस्त राष्ट्रीय आय का 7.8% भाग प्राप्त होता है। कृषि तथा पशुपालन उद्योग एक-दूसरे के पूरक तथा सहायक व्यवसाय हैं। कृषि पशुओं को चारा प्रद्मन करती है और पशु कृषि को बहुमूल्य खाद प्रदान करते हैं, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।
7. हमारे निर्यात व्यापार का मुख्य आधार- देश के निर्यात का अधिकांश भाग कृषि से ही प्राप्त होता है। अप्रैल, 2013-14 में प्रमुख वस्तुओं के निर्यात में बागान उत्पाद, कृषि एवं सहायक उत्पाद में 34% की वृद्धि दर्ज की गई है। कृषि उत्पादों में चाय, जूट, लाख, शक्कर, ऊन, रुई, मसाले, तिलहन आदि प्रमुख हैं।
8. केन्द्र तथा राज्य सरकारों की आय का साधन- यद्यपि कृषि क्षेत्र पर कर का भार अधिक नहीं होता है, तथापि कृषि राजस्व का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। लगान से लगभग 200 करोड़ वार्षिक आय का अनुमान लगाया गया है। इसके अतिरिक्त कृषि वस्तुओं के निर्यात-कर से भी आय प्राप्त होती है। केन्द्रीय सरकार के उत्पादन शुल्कों का एक बहुत बड़ा भाग चाय, तम्बाकू, तिलहन आदि फसलों से प्राप्त होता है।
9. आन्तरिक व्यापार का आधार- भारत में खाद्य-पदार्थों पर राष्ट्रीय आय का अधिकांश भाग व्यय होता है। अनुमान है कि शहरी क्षेत्रों में आय का 60.2% तथा ग्रामीण क्षेत्रों में आय का 69.07% भोजन पर व्यय किया जाता है। स्पष्ट है कि आन्तरिक व्यापार मुख्यत: कृषि पर आधारित होता है और कृषि क्षेत्र में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन का प्रभाव आन्तरिक व्यापार पर पड़ता है। थोक तथा खुदरा व्यापार के अतिरिक्त बैंकिंग तथा बीमा व्यवसाय भी कृषि से अत्यधिक प्रभावित होते हैं।
10. यातायात के साधनों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण- कृषि उत्पादन यातायात के साधनों को पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करता है। जिस वर्ष कृषि-उत्पादन कम होता है, रेल व सड़क-परिवहन आदि सभी साधनों की आय घट जाती है। इसके विपरीत, अच्छी फसल वाले वर्ष में इन साधनों की आय में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है।