उपदान का अर्थ वस्तुओं के मूल्य में भारी उच्चावचों का अर्थव्यवस्था पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है। ये उच्चावच आर्थिक स्थिरता में बाधक बनते हैं। अतः सरकार आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों को नीचे स्तर पर रखने का प्रयास करती है। जब सरकार वस्तुओं के मूल्यों को नीचे स्तर पर बनाए रखने के लिए उत्पादकों, वितरकों तथा निर्यातकों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है तो इस प्रकार की आर्थिक सहायता को उपदान कहा जाता है। प्रारम्भ में निर्यात प्रोत्साहन हेतु सरकार आर्थिक सहायता प्रदान करती थी ताक़ि निर्यातक कम मूल्यों पर वस्तुओं का निर्यात कर सकें और निर्यातों में तेजी से वृद्धि हो सके। कम मूल्यों पर वस्तुओं का निर्यात करने से निर्यातकों को जो हानि होती थी, सरकार उसे उपदान देकर पूरा करती थी। आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों को कम रखने के लिए सरकार द्वारा उपदान दिए जाते रहे हैं।
उपदान के पक्ष में तर्क
⦁ भारत में कृषि क्षेत्र के विस्तार की सम्भावनाएँ सीमित हैं। अत: कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए गहन कृषि को प्रोत्साहन देना आवश्यक है। गहन कृषि की सफलता आदाओं की उपलब्धता पर निर्भर करती है। ये आदाएँ हैं-पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ, अधिकाधिक उपजदायी बीज तथा रासायनिक उर्वरकों का भरपूर उपयोग। इनकी उपलब्धि सीमित है और उत्पादन लागत ऊँची। निर्धन किसानों के लिए इन सुविधाओं का बाजार मूल्य पर क्रय असम्भव है। अत: इनका कुछ भार सरकार को वहन करना चाहिए।
⦁ कम मूल्य पर आदाएँ मिलने से छोटे किसान भी आधुनिक तकनीकी को अपना सकेंगे। इसके परिणामस्वरूप छोटे किसान भी अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग कर सकेंगे।
⦁ गहन कृषि से कृषि क्षेत्र में आये और रोजगार में वृद्धि होगी, फसल ढाँचे में परिवर्तन होगा, व्यावसायिक फसलों के उत्पादन में वृद्धि होगी तथा आर्थिक असमानताओं में कमी आएगी।
अपदान के विपक्ष में तर्क
उपदान के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं
1. उपदान पर दी जाने वाली राशि में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। इसका सरकारी बजट पर भारी बोझ पड़ता है।
2. उपदान से संसाधनों का अपव्यय होता है। इस अपव्यय के मुख्य कारण हैं
⦁ संसाधनों का दोषपूर्ण आवंटन,
⦁ कम कीमत पर मिलने से साधनों के दुरुपयोग की सम्भावना तथा
⦁ कुशल प्रबन्धन के लिए प्रेरणा का अभाव।
3. उपदान के वितरण में भारी विषमताएँ विद्यमान हैं। इससे आर्थिक विषमताएँ भी बढ़ने लगती हैं।