किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त
(Theories of Development of Adolescence)
जब बालक बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करता है तो उसके अन्दर क्रान्तिकारी, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन शरीर और मन दोनों को प्रभावित करते हैं। इन परिवर्तनों के सम्बन्ध में निम्नलिखित दो सिद्धान्त प्रचलित हैं
1. आकस्मिक विकास का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्टेनले हाल (Stenley Hall) हैं। इनके अनुसार किशोरावस्था में प्रवेश करते ही बालक में जो परिवर्तन होते हैं, उनका सम्बन्ध न तो शैशवावस्था से होता है और न बाल्यावस्था से। इस प्रकार किशोरावस्था एक प्रकार से नया जन्म है। इस अवस्था में बालकों में जो परिवर्तन होते हैं, वे सब आकस्मिक होते हैं।
2. क्रमिक विकास का सिद्धान्त- क्रमिक विकास का सिद्धान्त आकस्मिक विकास के सिद्धान्त के ठीक विपरीत है। थॉर्नडाइक का मत है कि किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक परिवर्तन अचानक न होकर क्रमिक होते हैं। किंग (King) के अनुसार, “जिस प्रकार एक ऋतु में ही दूसरी ऋतु के आगमन के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, उसी प्रकार बाल्यावस्था और किशोरावस्था परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।”