आज भी भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है तथा मानसून का जुआ’ कहलाती है। यद्यपि देश में सिंचाई साधनों का पर्याप्त विकास हो चुका है तो भी सम्पूर्ण प्रयासों के बाद भी सिंचित क्षेत्रफल मात्र 35.7% ही हो पाया है। भारत में कृषि योग्य भूमि के मात्र 10% क्षेत्रफल में ही पर्याप्त वर्षा होती है तथा 30% भागों में सामान्य से बहुत-ही कम वर्षा होती है।
भारत में कम वर्षा वाले अधिकांश क्षेत्रों में सिंचाई द्वारा जल आज भी प्राप्त नहीं होता है। अतः ऐसे क्षेत्रों में शुष्क कृषि का विकास किया जाना अति आवश्यक है। ‘शुष्क कृषि, कृषि की एक ऐसी पद्धति है, जिसमें भूमि की नमी को बनाए रखा जाता है तथा फसलों को भी सूखने नहीं दिया जाता है। इसके लिए वर्षा से पूर्व खेतों को जोत लिया जाता है तथा उनकी मेड़बन्दी कर दी जाती है। खेतों की जुताई भी समोच्च (समान ऊँचाई) विधि से की जानी चाहिए। ऐसा करने से वर्षा का जल बह नहीं सकेगा तथा मिट्टी उस जल को पर्याप्त मात्रा में सोख लेगी। खेतों में जुताई-बुवाई के पश्चात् पटेला (भूमि को समतल बना देना) देना चाहिए, जिससे मिट्टी से वाष्पन क्रिया न हो सके।