अर्थतंत्र में तेजी-मंदी के चक्रो के दरम्यान सर्जित बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं ।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीनिवेशक और बचतकर्ता दोनों अलग-अलग होते हैं । पूँजीनिवेशक और बचतकर्ता के बीच जबतब असंतुलन सर्जित होता है । परिणाम स्वरूप कमी संपूर्ण अर्थतंत्र में तेजी तो कभी मंदी सर्जित होती है । तेजी की स्थिति में अर्थतंत्र में पूंजीनिवेश, उत्पादन, आय, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और बेरोजगारी कम होती है । जबकि मंदी की स्थिति में चीजवस्तुओं और सेवाओं की माँग में कमी आती है । परिणाम स्वरूप असरकारक माँग के अभाव के कारण उद्योगों का यहाँ मंदी बेरोजगारी का कारण है । इसलिए इसे चक्रीय बेरोजगारी या मंदीजन्य बेरोजगारी कहते हैं ।