गुप्तजी कहते हैं कि आर्य ऊँचे आदशों के साथ जीवन जीते थे। परोपकार ही उनके जीवन का उद्देश्य था। दूसरों के लिए जीने में ही वे अपने जीवन की सार्थकता मानते थे। स्वार्थ की भावना से वे कोसों दूर थे। वे कर्मवीर थे। निष्क्रिय होकर बैठना वे नहीं जानते थे। इस प्रकार गुप्तजी ने आर्यों के उच्च चरित्र की प्रशंसा की है।