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भारत में अंग्रेजों के साम्राज्य के समय सिविल सर्विस व्यवस्था के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें।

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भारत में सिविल सर्विस का प्रवर्तक लार्ड कार्नवालिस को माना जाता है। उसने रिश्वतखोरी को समाप्त करने के लिए अधिकारियों के वेतन बढ़ा दिए। उन्हें निजी व्यापार करने तथा भारतीयों से भेंट (उपहार) लेने से रोक दिया गया। उसने उच्च पदों पर केवल यूरोपियनों को ही नियुक्त किया।

लार्ड कार्नवालिस के बाद 1885 तक सिविल सर्विस का विकास-

(1) 1806 ई० में लार्ड विलियम बैंटिंक ने इंग्लैण्ड में हेलिबरी कॉलेज की स्थापना की। यहां सिविल सर्विस के नव-नियुक्त अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रशिक्षण के बाद ही उन्हें भारत भेजा जाता था।

(2) 1833 ई० के चार्टर एक्ट में कहा गया था कि भारतीयों को धर्म, जाति या रंग के भेदभाव के बिना सरकारी नौकरियां दी जायेंगी। परन्तु उन्हें सिविल सर्विस के उच्च पदों से वंचित रखा गया।

(3) 1853 ई० तक भारत आने वाले अंग्रेज़ कर्मचारियों की नियुक्ति कम्पनी के डायरेक्टर ही करते थे, परन्तु 1853 के चार्टर एक्ट के पश्चात् कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रतियोगिता परीक्षा शुरू कर दी गई। यह परीक्षा इंग्लैण्ड में होती थी और इसका माध्यम अंग्रेज़ी था। परीक्षा में भाग लेने के लिए अधिकतम आयु 22 वर्ष निश्चित की गई। यह आयु 1864 में 21 वर्ष तथा 1876 में 19 वर्ष कर दी गई। सतिन्द्रनाथ टैगोर सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने वाला पहला भारतीय था। उसने 1863 ई० में यह परीक्षा पास की थी।

(4) कम आयु में भारतीयों के लिए अंग्रेजी की यह परीक्षा दे पाना कठिन था और वह भी इंग्लैण्ड में जाकर। अतः भारतीयों ने परीक्षा में प्रवेश की आयु बढ़ाने की मांग की। उन्होंने यह मांग भी की कि परीक्षा इंग्लैंड के साथ-साथ भारत में भी ली जाये। लार्ड रिपन ने इस मांग का समर्थन किया। परंतु भारत सरकार ने यह मांग स्वीकार न की।

1886 के बाद सिविल सर्विस का विकास-

(1) 1886 ई० में वायसराय लार्ड रिपन ने 15 सदस्यों का पब्लिक सर्विस कमीशन नियुक्त किया। इस कमीशन ने सिविल सर्विस निम्नलिखित तीन भागों में बांटने की सिफारिश की

  • इंपीरियल अथवा इंडियन सिविल सर्विस-इसके लिए परीक्षा इंग्लैंड में हो।
  • प्रांतीय सर्विस-इसकी परीक्षा अलग-अलग प्रांतों में हो।
  • प्रोफैशनल सर्विस-इसके लिए कमीशन परीक्षा में प्रवेश की आयु 19 वर्ष से बढ़ा कर 23 वर्ष करने की सिफ़ारिश की।
    1892 ई० में भारत सरकार ने इन सिफ़ारिशों को मान लिया।

(2) 1918 में माँटेग्यू-चैम्सफोर्ड रिपोर्ट द्वारा यह सिफ़ारिश की गई कि सिविल सर्विस में 33% स्थान भारतीयों को दिए जाएं और धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ाई जाये। इस रिपोर्ट को भारत सरकार, 1919 द्वारा लागू किया गया।

(3) 1926 में केंद्रीय लोक सेवा कमीशन और 1935 में संघीय लोक सेवा कमीशन तथा कुछ प्रांतीय लोक सेवा कमीशन स्थापित किए गए।

यह सच है कि इंडियन सिविल सर्विस में भारतीयों को बड़ी संख्या में नियुक्त किया गया। फिर भी कुछ उच्च पदों पर प्रायः अंग्रेज़ों को ही नियुक्त किया जाता था।

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