व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले अनेक कारकों की विवेचना को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
A. जैविक कारक:
- ये वे कारक होते हैं जो व्यक्ति के आनुवंशिकता एवं जैविक प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं।
- किसी व्यक्ति की शारीरिक रचना एवं स्वास्थ्य उसके माता-पिता के स्वास्थ्य से वंशानुगत होता है।
- सामान्यतः लम्बे माता-पिता के बच्चे भी लम्बे होते हैं।
- माता-पिता की त्वचा के रंग का प्रभाव बच्चे की त्वचा के रंग पर भी पड़ता है, अर्थात् व्यक्तित्व के शारीरिक पक्ष के विकास पर जैविक कारकों पर पड़ता है।
- अगर कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से मजबूत होता है, इसका प्रभाव मानसिक शीलगुणों के विकास पर भी पड़ता है।
- शरीर में स्थिति विभिन्न अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ जैसे-पीयूष, पेंक्रियास, एड्रीनल, थॉयराइड आदि किसी व्यक्ति के शारीरिक विकास को नियंत्रित करती है।
- व्यक्ति विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक कमियों से ग्रसित होता है, जिससे उसका व्यक्तित्व प्रभावित होता है।
B. पर्यावरणीय कारक:
- ये ऐसे कारक हैं जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के बाह्य वातावरण, उसका समाज तथा संस्कृति से है।
- पर्यावरणीय कारकों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक कारक आदि शामिल किए जाते हैं।
- सामाजिक कारकों में व्यक्ति जिस समाज में रहता है, जिस परिवार में रहता है वहाँ का वातावरण, आर्थिक स्थिति, पालन-पोषण का प्रभाव आदि व्यक्तित्व विकास पर पड़ता है।
- माता-पिता का अत्यधिक कठोर होना या बहुत प्रेम करना तथा बच्चों की हर बात का समर्थन करना भी व्यक्तित्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
- परिवार के सदस्यों के मध्य आपसी सम्बन्ध अच्छे होने पर बच्चों में आत्मविश्वास, अन्य लोगों पर विश्वास आदि गुण विकसित होते हैं।
- विद्यालयी परिवेश, मित्र समूह आदि कारकों का प्रभाव भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
- व्यक्ति जिस संस्कृति में पला-बड़ा होता है, वहाँ के तौर-तरीके, रीति-रिवाज तथा धार्मिक गुण आदि व्यक्ति के व्यक्तित्व पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।
अत: दो महत्वपूर्ण कारकों जिनमें जैविक तथा पर्यावरणीय शामिल हैं, उसका व्यक्ति के व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। ये दोनों ही कारक व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं। इसके साथ ही एक व्यक्ति समाज में अपनी सम्पूर्ण क्रियाओं तथा व्यवहार को संचालित करते हुए अपनी एक अहम् भूमिका का निर्वाह भी करता है।