(i) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई:
लक्ष्मीबाई 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी महिला क्रान्तिकारी थीं। वह झांसी की रानी थीं। उनके पति को अंग्रेजों ने पुत्र गोद लेने की अनुमति प्रदान नहीं की थी। लक्ष्मीबाई अपने पति की मृत्यु के उपरान्त झाँसी की शासिका बनीं। इन्होंने कई युद्धों में अंग्रेजों को परास्त किया। 1858 ई. में अंग्रेज सेनापति यूरोज ने झाँसी पर आक्रमण किया। तात्या टोपे के साथ मिलकर इन्होंने बड़ी वीरता के साथ अपने किले की रक्षा की किन्तु वह पराजित हुईं। फिर भी अंग्रेजों को वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई। अतः यूरोज ने पुनः अप्रैल में झाँसी पर आक्रमण किया। रानी ने वीरतापूर्वक शत्रुओं का सामना किया किन्तु रानी के कुछ अधिकारी अंग्रेजों से मिल गये। अतः रानी लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुई।
(ii) नाना साहेब:
नाना साहेब 1857 ई. के विद्रोह के एक प्रमुख सेनापति थे। नाना साहेब एक वीर मराठा तथा पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र थे। उन्होंने स्वयं को जून, 1857 ई. में कानपुर में पेशवा । घोषित कर दिया किन्तु अंग्रेजों ने उन्हें पेशवा मानने से इनकार कर दिया। इसके अतिरिक्त अँग्रेज़ों ने नाना साहेब की 80,000 पाउण्ड की पेंशन भी बन्द कर दी। इससे नाना साहेब अंग्रेजों से अत्यधिक क्रुद्ध हो गये। नाना साहेब ने प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों का वीरता के साथ मुकाबला किया।
कानपुर में क्रान्तिकारियों का नेतृत्व भी नाना साहेब ने किया तथा कर्नल नील से जबरदस्त संघर्ष किया। कर्नल नील अवध (वर्तमान उत्तर प्रदेश) से क्रान्तिकारियों का पूर्ण रूप से दमन करना चाहता था। अत: कर्नल नील तथा नाना साहेब में भीषण युद्ध हुआ। दुर्भाग्य से युद्ध में नाना साहेब पराजित हो गये तथा वहाँ से भागकर नेपाल चले गये।