'जूझ' आत्मकथात्मक अंश में लेखक होनहार बालक है। उसका पिता पाँचवीं कक्षा में आते ही उसे पढ़ाई से हटाकर खेती के काम में लगा देता है। वह पिता के कहे अनुसार खेतों में पानी देता है, ढोर चराता है, फसल की बुवाई-कटाई करता है। परन्तु इन कार्यों को करते हुए वह सन्तुष्ट नहीं होता है क्योंकि वह आगे पढ़ना चाहता है। वह दत्ताजी राय की आज्ञा के अनुसार पढ़ने जाने लगता है और पिता की शर्तों को स्वीकार कर पढ़ाई भी करने लगता है। वह अपने परिश्रम के कारण विद्यालय का अग्रणी छात्र ही नहीं बनता बल्कि शिक्षक का चहेता छात्र भी बन जाता है। साथ ही वह कविता-रचना में भी प्रवीण हो जाता है। इन कारणों से सिद्ध होता है कि 'जूझ' आत्मकथात्मक अंश में लेखक एक परिश्रमी बालक है, जो अपने परिश्रम के आधार पर भविष्य के दरवाजे स्वयं खोल लेता है।