आधुनिक लोकतांत्रिक युग में प्रत्येक शासक की यह कोशिश होती है कि राजनीतिक सत्ता में अधिक-से-अधिक लोगों की साझेदारी सुनिश्चित की जाए ताकि शासन को स्थायी और टिकाऊ बनाया जा सके। वर्तमान लोकतांत्रिक युग में सत्ता में साझेदारी के निम्नलिखित चार रूप देखने को मिलते हैं।
(i) सरकार के विभिन्न अंगों के मध्य सत्ता का विभाजन-
सामान्यतः सरकार के तीन अंग होते हैं-
(क) विधायिका,
(ख) कार्यपालिका और
(ग) न्यायपालिका।
जब विभाजन अथवा सीमांकन कर दिया जाता है तब उसे शक्तियों का पृथक्करण कहा जाता है। ऐसा करने से किसी एक अंग के द्वारा शक्ति के दुरुपयोग की संभावना कम होती है।
(ii) विभिन्न स्तरों पर गठित सरकारों के बीच सत्ता का विभाजन- सुविधा हेतु शासन व्यवस्था को तीन स्तरों पर विभाजित कर दिया जाता है-राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्र सरकार, प्रांतीय स्तर पर राज्य सरकार तथा निम्नतम स्तर पर स्थानीय सरकार। भारतीय संविधान द्वारा केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता का स्पष्ट विभाजन कर दिया गया है।
इसी उद्देश्य से तीन सूचियाँ बनाई गई हैं-
(क) संघ सूची,
(ख) राज्य सूची और
(ग) समवर्ती सूची।
इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद्, नगर पंचायत, नगर परिषद एवं नगर निगमों की व्यवस्था की गई है।
(iii) विभिन्न समुदायों के बीच सत्ता का विभाजन- प्रायः, प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में अनेक जाति, धर्म, भाषा के लोग रहते हैं। ऐसे देशों में सत्ता का बँटवारा इस प्रकार किया जाता है कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय दोनों की सत्ता में साझेदारी हो सके। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच एकता कायम रह सके।
(iv) गैर-सरकारी संस्थानों में सत्ता का विभाजन- प्रायः, प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में गैर-सरकारी संस्थाएँ भी सत्ता में साझेदारी के लिए प्रयत्नशील रहती है। विभिन्न हित-समूह, दबाव-समूह, संघ, संगठन इत्यादि इसके उदाहरण हैं। ये सत्ता में साझेदारी के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं।