लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव नियमित होते रहते हैं। सरकार जब कानून बनाती है तो उस पर जनप्रतिनिधितों के साथ साथ आम जनता के चोच भी खुलकर चर्चाएँ होती हैं। अपने प्रतिनिदिया का चुनने का कार्य करते हैं किंतु यह देखा जाता है कि आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से मजबूत लोगों का दवदवा रहता है। बावजूद इसक कि जनता में जागरूकता की वृद्धि एवं व्यापक प्रतिरोध से लगातार सुधार की संभावना बनी रहती है। उल्लेखनीय है कि शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के कारण आज लोग अपने मताधिकार का बढ़ चढ़कर उपयोग कर रहे हैं। यों भारतीय लोकतंत्र के ढाँचागत स्वरूप में कार्ड बुनियादी परिवर्तन नहीं हुआ है किंतु लोगों का लोकतंत्र के प्रति आस्था बढ़ा है। आज लाग सिर्फ मताधिकार का ही प्रयोग नहीं कर रहे हैं। बल्कि सरकार की निर्णय प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप कर रहे हैं। यही कारण है कि सरकार का जनता के प्रति उत्तरदायी बनाना पड़ता है क्योंकि इसे जनता द्वारा नकारने का खतरा बरकरार रहता है।