स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण पद्धति में ज़मींदार-जागीरदार आदि का स्वामित्व था। यह खेतों में बिना कोई कार्य किए केवल लगान वसूलते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को यू० एस० ए० से अनाज आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू-सुधारों की आवश्यकता हुई जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना था।
भूमि सुधारों के प्रकार —
- ज़मींदारी उन्मूलन
- काश्तकारी खेती
- भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारण
- चकबंदी इत्यादि।