निम्नलिखित स्रोत को पढ़िए और उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
पवित्र पेड़ों के झुरमुट विविध और दुर्लभ जातियों की संपत्ति
प्रकृति की पूजा सदियों पुराना जनजातीय विश्वास है, जिसका आधार प्रकृति के हर रूप की रक्षा करना है। इन्हीं विश्वासों ने विभिन्न बनों को मूल एवं कौमार्य रूप में बचाकर रखा है, जिन्हें पवित्र पेड़ों के झुरमुट (देवी-देवताओं के वन) कहते हैं। वनों के इन भागों में या तो वनों के ऐसे बड़े भागों में स्थानीय लोग ही घुसते तथा न ही किसी और को छेड़छाड़ करने देते।
कुछ समाज कुछ विशेष पेड़ों की पूजा करते हैं और आदिकाल से उनका संरक्षण करते आ रहे हैं। छोटानागपुर क्षेत्र में मुंडा और संथाल जनजातियाँ महुआ और कदंब के पेड़ों की पूजा करते हैं। ओडिशा और बिहार की जनजातियाँ शादी के दौरान इमली और आम के पेड़ की पूजा करती हैं। हममें से बहुत से व्यक्ति पीपल और वटवृक्ष को पवित्र मानते हैं।
भारतीय समाज में अनेकों संस्कृतियाँ हैं और प्रत्येक संस्कृति में प्रकृति और इसकी कृतियों को संरक्षित करने के अपने पारंपरिक तरीके हैं। आमतौर पर झरनों, पहाड़ी चोटियों, पेड़ों और पशुओं को पवित्र मानकर उनका संरक्षण किया जाता है। आप अनेक मंदिरों के आस-पास बंदर और लंगूर पाएँगे। उपासक उन्हें खिलाते-पिलाते हैं और मंदिर के भक्तों में गिनते हैं। राजस्थान में बिश्नोई गाँवों के आस-पास आप काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय और मोरों के झुंड देख सकते हैं जो वहाँ के समुदाय का अभिन्न हिस्सा हैं और कोई उनको नुकसान नहीं पहुँचाता।
1. पवित्र पेड़ों के झुरमुट, प्रकृति की पूजा की मान्यता से कैसे संबंधित है?
2. समुदाय, पेड़ों को अपनी संस्कृतियों में किस प्रकार शामिल करते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
3. उन सांस्कृतिक मूल्यों की व्याख्या कीजिए जो प्रकृति के सह-अस्तित्व में योगदान देते हैं।