रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा प्रो० रोबिन्स ने अपनी पुस्तक ‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science में अर्थशास्त्र की परिभाषा एक नए दृष्टिकोण से दी जो इस प्रकार है अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जिसमें साध्यों तथा सीमितता और अनेक उपयोग वाले साधनों से सम्बन्धित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।”
रोबिन्स की परिभाषा के मूल तत्त्व
प्रो० रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा के मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं
⦁ मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं और जैसे ही एक आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है, वैसे ही दूसरी आवश्यकता सामने आ जाती है।
⦁ मनुष्य के पास साधन सीमित होते हैं।
⦁ साध्यों (आवश्यकताओं) की तीव्रता में अन्तर होता है।
⦁ साधनों के वैकल्पिक प्रयोग सम्भव हैं अर्थात् आवश्यकता पूर्ति के एक ही साधन का अनेक प्रकार से प्रयोग हो सकता है।
असीमित आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित साधनों के कारण मनुष्य के सामने चुनाव की समस्या आती है और आर्थिक समस्या का जन्म होता है। यही आर्थिक समस्या आर्थिक जीवन (अर्थशास्त्र) का आधार है।
परिभाषा की आलोचना
अनेक अर्थशास्त्रियों; जैसे—डरबिन, वूटन, फ्रेजर आदि ने रोबिन्स की परिभाषा की कड़ी आलोचना की है। कुछ प्रमुख आलोचनाएँ अग्रलिखित हैं
⦁ अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति पूर्णतः तटस्थ नहीं है-प्रो० रोबिन्स की यह धारणा कि अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति पूर्णतः तटस्थ है, गलत है। व्यवहार में अर्थशास्त्र को कल्याण की भावना से पूर्णत: मुक्त नहीं किया जा सकता। स्वयं रोबिन्स की परिभाषा में ‘कल्याण’ भावना का समावेश
⦁ इस परिभाषा से अर्थशास्त्र का क्षेत्र एक-साथ अत्यन्त विस्तृत’ एवं ‘अत्यन्त संकुचित’ हो गया है-प्रो० रोबिन्स ने अर्थशास्त्र के अन्तर्गत सभी प्रकार के मनुष्यों की सभी प्रकार की क्रियाओं के अध्ययन का समावेश करके उसके क्षेत्र को अत्यधिक व्यापक बना दिया है। दूसरी
ओर, प्रो० रोबिन्स की परिभाषा ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को अत्यधिक संकुचित भी कर दिया है। इसका कारण यह है कि रोबिन्स का अर्थशास्त्र ‘साधनों की दुर्लभता से उत्पन्न समस्याओं का तो अध्ययन करता है किन्तु ‘प्रचुरता से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का अध्ययन नहीं करता।।
⦁ अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान नहीं है-रोबिन्स ने अर्थशास्त्र को ‘विशुद्ध वास्तविक विज्ञान माना है। इसके विपरीत, वास्तविकता यह है कि अर्थशास्त्र में केवल वास्तविक विज्ञान है। वरन् यह आदर्श विज्ञान और कला भी है।
⦁ ‘साध्यों’ एवं ‘साधनों के बीच अन्तर स्पष्ट नहीं है—प्रो० रोबिन्स ने अपनी परिभाषा में ‘साध्यों एवं ‘साधनों के मध्य अन्तर को स्पष्ट नहीं किया है।
⦁ ‘सीमित’ एवं वैकल्पिक प्रयोग’ शब्दों का प्रयोग अनावश्यक–साधन सदैव सीमित होते हैं। एवं उनका वैकल्पिक प्रयोग किया जा सकता है। अत: परिभाषा में इन शब्दों का प्रयोग अनावश्यक है।
⦁ अन्य शास्त्रों से अन्तर स्पष्ट करना सरल नहीं-यदि रोबिन्स की परिभाषा का व्यवहार में पालन किया आए तो अर्थशास्त्र एवं अन्य शास्त्रों में अन्तर करना सरल नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने . अर्थशास्त्र के अन्तर्गत सभी प्रकार के मनुष्यों की सभी प्रकार की क्रियाओं को शामिल किया है।
⦁ केवल निगमन प्रणाली का प्रयोग-प्रो० रोबिन्स ने अपने आर्थिक विश्लेषण में केवल निगमन प्रणाली का ही प्रयोग किया है, जबकि सन्तुलित निष्कर्षों की प्राप्ति के लिए आगमन तथा निगमन दोनों ही प्रणालियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
⦁ स्थैतिक परिभाषा-प्रो० रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा की प्रकृति स्थैतिक है, क्योंकि यह ‘आर्थिक विकास एवं उससे उत्पन्न समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देती।
⦁ मानव व्यवहार सदैव विवेकपूर्ण नहीं—प्रो० रोबिन्स की मान्यता है कि मानव व्यवहार सदैव विवेकपूर्ण होता है, जबकि वास्तविक जीवन में हम ऐसा नहीं पाते।
⦁ सामाजिक पक्ष की उपेक्षा-प्रो० रोबिन्स ने समाज के अन्दर तथा बाहर रहने वाले सभी प्रकार के मनुष्यों को अर्थशास्त्र का विषय माना है। यह गलत है, क्योंकि जब तक आर्थिक समस्याएँ सामाजिक रूप नहीं ले लेतीं, उन्हें अर्थशास्त्र के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जा सकता।
⦁ सैद्धान्तिक पक्ष की प्रधानता–रोबिन्स की परिभाषा सैद्धान्तिक अधिक और व्यावहारिक कम है। इस कारण यह सामान्य लोगों के लाभ एवं उपयोग का शास्त्र नहीं रह गया है। इसके सैद्धान्तिक स्वरूप ने विषय को जटिल बना दिया है।