Use app×
Join Bloom Tuition
One on One Online Tuition
JEE MAIN 2025 Foundation Course
NEET 2025 Foundation Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
1.2k views
in Biology by (49.2k points)
closed by

वृक्षों में रसारोहण क्रिया का विस्तार से वर्णन कीजिए।

1 Answer

+1 vote
by (48.1k points)
selected by
 
Best answer

रसारोहण की क्रियाविधि (Mechanism of Ascent of Sap) – छोटे शाकीय पादपों में रसारोहण की समस्या नहीं होती है। परन्तु ऊँचे वृक्षों जिनकी लम्बाई कई मीटर होती है, में रसारोहण की व्याख्या करना कठिन है। इन वृक्षों में रसारोहण की क्रियाविधि स्पष्ट करने के लिए अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं।

इन सिद्धान्तों को तीन वर्गों में विभक्त किया गया है –

1. जैव बल सिद्धान्त (Vital force theory)
2. मूल दाब का सिद्धान्त (Root pressure theory)
3. भौतिक बल सिद्धान्त (Physical force theory)

1. जैव बल सिद्धान्त (Vital force theory) – इस सिद्धान्त के अनुसार रसारोहण एक जैविक क्रिया (Vital activity) है। पौधों में रसारोहण तने की जीवित कोशिकाओं में होने वाली क्रियाओं के कारण उत्पन्न जैव बलों (Vital forces) द्वारा होता है।

इस सम्बन्ध में प्रमुख वैज्ञानिकों के विचार संक्षेप में प्रस्तुत हैं –

गौड्लेवस्की (Godlewski 1984) के रिले पम्प सिद्धान्त (Relay pump theory) के अनुसार जाइलम मृदूतक (Xylem parenchyma) तथा मज्जा रश्मियों (Medullary rays) की जीवित कोशिकाओं के परासरण दाब में आवर्ती परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप रसारोहण की क्रिया होती है।

सर जे०सी० बोस (Sir J.C. Bose, 1923) के स्पंदन सिद्धान्त (Pulsation theory) के अनुसार पौधों में रसारोहण तने के वल्कुट (Cortex) की सबसे भीतरी कोशिकाएँ जो अन्तस्त्वचा के सम्पर्क में होती हैं में नियमित लयवद्ध स्पन्दन (Rhythmic pulsation) के कारण रसारोहण होता है। उन्होंने अपना प्रयोग भारतीय टेलीग्राफ पादप (Desmodium gyrans) पर किया था।

स्ट्रासबर्गर (Strassburger, 1891) ने अपने प्रयोग से सिद्ध किया कि रसारोहण जैविक क्रिया नहीं है। उन्होंने पादप के कटे भाग को पिक्रिक अम्ल में डुबोया तथा इसके वाद इयोसिन घोल में रखा। थोड़ी देर में इओसिन का लाल रंग पत्तियों तक पहुँच गया। इससे सिद्ध होता है कि पिक्रिक अम्ल से कोशिकाओं के मर जाने के बाद भी रसारोहण क्रिया सम्पन्न हुई और लाल जल पत्तियों तक पहुँच गया। इस प्रयोग से उन्होंने सिद्ध किया कि जीवित कोशिकाओं का रसारोहण की क्रियाविधि से सीधा सम्बन्ध नहीं है परन्तु इनकी उपस्थिति इस क्रिया के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए आवश्यक है।

2. मूल दाब सिद्धान्त (Root pressure theory) – इस सिद्धान्त को प्रीस्टले (Priestley) ने दिया था। पैरेन्काइमी कोशिकाओं की कोशिकाभित्ति लचीली होती है। इन कोशिकाओं में जल अथवा विलयन के प्रवेश से उनकी कोशिकाभित्ति में तनाव उत्पन्न होता है और वह पुनः अपनी सामान्य स्थिति में आने का प्रयास करती है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में कोशिका में उपस्थित द्रव्य पर धनात्मक दबाव पड़ता है जिससे कोशिका से द्रव्य की कुछ मात्रा निकलकर वाहिकाओं (Vessels) में आ जाती हैं। इस द्रव्य के कारण वाहिकीय तत्वों में उत्पन्न द्रवस्थैतिक दाब को मूल दाब (Root pressure) कहते हैं। दूसरे शब्दों में जाइलम वाहिकाओं के रस में पाया जाने वाली धनात्मक दाब मूल दाब (Root pressure) कहलाता है।

मूलदाब का मापन मैनोमीटर (Manometer) द्वारा किया जाता है। परन्तु किसी भी पादप में इसका मान 2 वायुमण्डल से अधिक नहीं पाया गया। 2 वायुमण्डल दाब पौधों में जल को लगभग 20 मीटर तक चढ़ाने के लिए पर्याप्त है लेकिन ऊँचे काष्ठीय पौधों के लिए 12 वायुमण्डलीय मूल दाब की आवश्यकता होती है। किसी भी पौधे में इतना अधिक मूल दाब किसी भी परिस्थिति में प्रेक्षित नहीं किया गया। अतः इस सिद्धान्त का महत्व सीमित है। साथ ही मूल दाब सभी पादपों में नहीं पाया जाता है। किसी भी अनावृतबीजी (Gymnosperm) पादप में मूलदाब नहीं पाया जाता है।

3. भौतिक बल सिद्धान्त (Physical force theories) – इन सिद्धान्तों के अनुसार, रसारोहण एक भौतिक क्रिया है तथा रसारोहण केवल भौतिक बलों (Physical forces) के कारण होता है एवं इनमें जीवित कोशिकाएँ भाग नहीं लेती हैं। वैज्ञानिकों ने समय-समय पर विभिन्न बलों को रसारोहण का कारण बताया जिसमें वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric pressure) अन्तः शोषण (Imbibition) तथा केशिकत्व (Capillary action) सम्मिलित हैं। इन सिद्धान्तों में डिक्सन तथा जौली (Dixone and Jolly, 1894) का जल का ससंजन बल सिद्धान्त (Cohesion force of water theory) एवं वाष्पोत्सर्जन अपकर्ष या खिंचाव सिद्धान्त (Transpirational pull theory) रसारोहण के सभी सिद्धान्तों में सर्वाधिक मान्य सिद्धान्त है।

डिक्सन तथा जौली के ससंजन तनाव सिद्धान्त (Cohesion tension principle) अथवा वाष्पोत्सर्जनाकर्षण या वाष्पोत्सर्जन खिंचाव सिद्धान्त (Transpirational pull theory) के प्रमुख लाक्षणिक बिन्दु निम्नवत् हैं –

  1. पौधों में जड़ से लेकर (तने में से होते हुए) पत्तियों तक जल का एक निरन्तर अटूट स्तम्भ होता है। इसे जल स्थैतिक प्रणाली (Hydrostatic system) कहते हैं।
  2. वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल हानि से पर्ण की शिराओं के जल स्तम्भ में खिंचाव उत्पन्न होता है। यह खिंचाव वाष्पोत्सर्जन खिंचाव (Transpirational pull) कहलाता है।
  3. जल के अणुओं के मध्य ससंजन बल (Cohesion force) होता है। जिसका मान 45-207 वायुमण्डल (atm.) हो सकता है। इस बल के कारण वाष्पोत्सर्जन खिंचाव से जल का स्तम्भ टूटती नहीं है। वरन् ऊपर की ओर सतत् रूप से खिंचा चला जाता है।
  4. डिक्सन तथा जौली के सिद्धान्त के अनुसार वाष्पोत्सर्जन से उत्पन्न तनाव तथा जल के अणुओं के मध्य व्याप्त ससंजन बल के कारण पादपों में जल को नीचे से शीर्ष की ओर निष्क्रिय रूप से (Passively) खींच लिया जाता है। इस कार्य में न तो किसी प्रकार की उपापचयी ऊर्जा (Metabolic energy) व्यय होती है और न जीवित कोशिकाओं का कोई योगदान होता है। रसारोहण पूर्णत: भौतिक बलों द्वारा संचालित होने वाली प्रक्रिया है।
  5. इस सिद्धान्त के समर्थन में अनेक प्रमाण दिए जाते हैं। यथा – वाष्पोत्सर्जन दर सीधे रसारोहण से सम्बन्धित होती है तथा दिन के समय पादप के स्तम्भ व शाखाओं में जल स्तम्भ तनाव की स्थिति में होता है आदि। वर्तमान समय में रसारोहण की क्रिया समझने में यह सिद्धान्त सर्वाधिक मान्य सिद्धान्त है।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...