मूल दाब सिद्धान्त (Root pressure theory) – इस सिद्धान्त को प्रीस्टले (Priestley) ने दिया था। पैरेन्काइमी कोशिकाओं की कोशिकाभित्ति लचीली होती है। इन कोशिकाओं में जल अथवा विलयन के प्रवेश से उनकी कोशिकाभित्ति में तनाव उत्पन्न होता है और वह पुनः अपनी सामान्य स्थिति में आने का प्रयास करती है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में कोशिका में उपस्थित द्रव्य पर धनात्मक दबाव पड़ता है जिससे कोशिका से द्रव्य की कुछ मात्रा निकलकर वाहिकाओं (Vessels) में आ जाती हैं। इस द्रव्य के कारण वाहिकीय तत्वों में उत्पन्न द्रवस्थैतिक दाब को मूल दाब (Root pressure) कहते हैं। दूसरे शब्दों में जाइलम वाहिकाओं के रस में पाया जाने वाली धनात्मक दाब मूल दाब (Root pressure) कहलाता है।
मूलदाब का मापन मैनोमीटर (Manometer) द्वारा किया जाता है। परन्तु किसी भी पादप में इसका मान 2 वायुमण्डल से अधिक नहीं पाया गया। 2 वायुमण्डल दाब पौधों में जल को लगभग 20 मीटर तक चढ़ाने के लिए पर्याप्त है लेकिन ऊँचे काष्ठीय पौधों के लिए 12 वायुमण्डलीय मूल दाब की आवश्यकता होती है। किसी भी पौधे में इतना अधिक मूल दाब किसी भी परिस्थिति में प्रेक्षित नहीं किया गया। अतः इस सिद्धान्त का महत्व सीमित है। साथ ही मूल दाब सभी पादपों में नहीं पाया जाता है। किसी भी अनावृतबीजी (Gymnosperm) पादप में मूलदाब नहीं पाया जाता है।